भारतीय संस्कृति की पीड़ा - कविता - आशाराम मीणा

कालिदास और सूरदास की शिक्षित  सरल कहानी हैं।
रसखान के मन में मोहन मीरा की यही ज़ुबानी है।।
झूठा ताना-बाना नहीं चलेगा कबीरा तेरी सच्ची वाणी है।
पंच तत्व का बना है यह पुतला सब झूठी कहानी है।।
वेदों की ओर लौटो चलो अब कुछ बची हुई है आशा।
आजाद भारत में मैकाले की शिक्षा बनी हुई है भाषा।।

झूठी कहानियाँ गढ़ रहे हो भारत की पावन धरती पर।
कुसभ्यता को थोप रहे हो सनातनी सत संस्कृति पर।।
असहनीय विष घोल रहे हो नर पालनहार प्रकृति पर।
भारत सदैव विश्वगुरु रहा है जगत की सर्व सृष्टि पर।।
महामारी में मर रहा है मानव अब योग बताए रास्ता।
आज़ाद भारत में मैकाले की शिक्षा बनी हुई है भाषा।।

आशाराम मीणा - कोटा (राजस्थान)

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