विनय "विनम्र" - चन्दौली (उत्तर प्रदेश)
मन की दुरभिसंधि - कविता - विनय "विनम्र"
गुरुवार, जनवरी 28, 2021
अट्टहास हँस रहा था, मन,
जीत लिया सारा दर्शन,
कुंठित कलुषित, माया लेकर,
रक्त पिपासा मेरु श्रृंखला,
नस नाड़ी भरपूर,
अस्थि पन्जरों के भीषण,
ताना बाना से बुना हुआ,
स्वांस से सिंचित,
पांच तत्व के मिश्रण की,
घड़ी दो घड़ी की परछाई,
अग्नि शिखा पर,
श्मशान के शांत वनों में,
शीतल क्रंदन के बीच,
सभी को त्याग,
सदा जल जाता तन,
वाह रे विक्षिप्त पुरुष मेरे मन।।
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