कर्मवीर सिरोवा - झुंझुनू (राजस्थान)
उम्र जाया कर दी यूँ ही - ग़ज़ल - कर्मवीर सिरोवा
गुरुवार, जनवरी 28, 2021
सारी उम्र जाया कर दी यूँ ही पढ़ने पढ़ाने में,
मुठ्ठीभर लम्हात हसीं थे जो गुज़रें मुस्कराने में।
खेल के मैदान में वो चंद नाम क्या ख़ूब थे,
फ़ीका लगता हैं गुरुजी, सरजी बनकर कमाने में।
गाँव मौहल्ले में पहले जब चक्कर लगाते थे,
प्रेम भाईचारा था, अब नफ़रतें रह गई ज़माने में।
कूँचों मैदानों से वाबस्ता रही हैं दुनिया हमारी,
मोबाईल सबब हैं गलियों से गुलों को हटाने में।
वो जो ख़ुतूत बंद था गाँव का अतीत समाए,
अर्से बाद देखा सुनहरे हुरूफ़ सजे हैं फ़साने में।
माज़ी के रंगीं सफ़हा पर अमिट हैं वो नाज़नीं,
नज़रों का वो लम्स खूब हैं मौसमों को सजाने में।
गुज़रा वो खज़ाना फ़रोख्त कर लिया वक़्त ने,
ग़नीमत ये रही मैं दौलत अब लाया हूँ घराने में।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
सम्बंधित रचनाएँ
सिर्फ़ मरते हैं यहाँ हिन्दू, मुसलमाँ या दलित - ग़ज़ल - सूर्य प्रकाश शर्मा 'सूर्या'
सीने से जो लगाता था तस्वीर क्या हुई - ग़ज़ल - ममता गुप्ता 'नाज'
मौसम है हर साल बदलते रहता है - ग़ज़ल - हरीश पटेल 'हर'
मार डालेंगी हमें उनकी यही अठखेलियाँ - ग़ज़ल - सैय्यद शारिक़ 'अक्स'
कैसे आवाज़ हमारी वो दबा सकते हैं - ग़ज़ल - अरशद रसूल
एक दो-दिन का है ख़ुमार, बस, और - ग़ज़ल - रोहित सैनी
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर