छब्बीस जनवरी - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला

आई है फिर से देश में,
छब्बीस जनवरी।
लाई है नव संदेश,
ये छब्बीस जनवरी।
इस ही पवित्र दिवस को,
था लोकतंत्र का मन्त्र सजा।
मिले मूलअधिकार सभी को,
संविधान का विगुल बजा।
वीरों की यादें ले आता,
जब आता यह प्यारा दिन।
देते ना क़ुर्बानी वह तो,
कहाँ से आता न्यारा दिन।
इस दिन रंगता देश प्रेम में,
आज़ादी का जश्न मनाता।
इस दिन सजती नई नवेली,
दुल्हन सी भारत माता।
जब आता गणतन्त्र दिवस,
तो वीरों की यादें ले आता।
देते ना क़ुर्बानी वो तो,
देश कहाँ आज़ादी पाता।
जीवन में उत्साह तिरंगा,
लाता है सुन प्यारे।
इसकी शान बनाए रखना,
चाहे जीवन हारे।
 
सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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