श्रवण निर्वाण - हनुमानगढ़ (राजस्थान)
आगे बढ़ना सीखा - कविता - श्रवण निर्वाण
मंगलवार, जनवरी 12, 2021
ज़रूर! लाख कमियाँ है मुझमें,
ये तो मिल जाती हर किसी में,
मेरे अपने विचार, नहीं लाचार,
स्वतंत्र हैं मेरे ह्रदय के ये उद्गार।
मन भावों के सागर में बहता,
लहरों के भँवर में खोया रहता,
न विचलित ना ही उद्गिन रहता,
क्षण भंगुर है जीवन, नहीं डरता।
मेरे अपने अन्दाज़-ए-ख़याल,
वे कर सकते हैं बहुत सवाल,
कोमल मन ने बहुत सहे प्रहार,
देखा है मैंने आज भी हैं तैयार।
वज्र बनाती ह्रदय, ये ललकार,
गलत को नहीं करता स्वीकार,
अब तो आहट मेरी ना सुहाती,
पल पल की ख़बर जो बताती।
हर लम्हें को देखा है क़रीब से,
संघर्ष ये चल रहा है नसीब से,
होगा वही जो भाग्य में लिखा,
हर हाल में आगे बढ़ना सीखा।
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