कुछ गर्म काम - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"

कोई जड़ाता रहा हीरे मोती अंगुलियों में,
कोई कांख में अंगुलियाँ छुपा कर जड़ाता रहा। 
कोई ठंड में भी आइसक्रीम खा रहा, 
कोई ठंड में अपना हाड़ कंपकंपा रहा।।

आग में कोई हाथ सेक, गरम-गरम खा रहा,
कोई इतनी ठंड न सहन कर पाया। 
अब सारा तन बदन आग ही में जा रहा,
गरम की कमी ही नहीं आग में समा रहा।।

जरा कोई थोड़ी गर्मी दिल में भी पैदा करो,
कोई गरीब दुआएँ दे कुछ काम ऐसा करो।
कोई मजबूर होकर खुले में ही कांप रहा,
भले ही पुराने हुए, कुछ कपड़े दान करो।।

ठंड को जान लो अब ठंड न कोई जान ले,
कोई तो खुले में आकर कुछ गरम काम करो।
कोई कड़ी ठंड में नंगा कंपकंपाये नही,
बस मुस्कुराए अब दांत कटकटाए नहीं।।

सूर्य मणि दूबे "सूर्य" - गोण्डा (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos