शौक़ शायरी का मुझे यूँ लगा था,
दिल को अपना गंवा जो दिया था।
आवाज़ उसकी मधुर इतनी लगती,
कि उसी की ही धुन में खो मैं गया था।
कली जैसी खिलती उसकी हँसी मुस्कुराहट,
तबस्सुम पर उसकी पागल मैं हुआ था।
क़लम को है थामा ये वो दौर था,
जब यादों में लिखना शुरू मैं किया था।
प्रेरक बनीं तेरी भूली बिसरी यादें,
दिली शुक्रिया धैर्य बना मुझे दिया था।
अतुल पाठक "धैर्य" - जनपद हाथरस (उत्तर प्रदेश)