मेरी प्यारी पुस्तक - कविता - नौशीन परवीन

तू न होती तो
शायद, मेरी दुनियाँ न होती।
कभी बिस्तर पर आराम से
लेटे-लेटे तुझसे बाते मैं करतीं,
तो कभी सोफे पर बैठ कर
तुझको पढ़ा मैं करतीं।
मेरी पुस्तक
तू ना होती तो
मैं ना होती।
कभी माँ के आँचल से लगकर
तो, कभी उसके आँचल से
आँख-मिचौली कर पढ़ती, 
झुले पर बैठे प्रकृति के बीच
सुन कोयल की मीठी बोली 
मैं पढ़ती तुझे, मेरी प्यारी पुस्तक
तू न होती तो मैं न होती।
मेरे अकेलेपन को दूर कर
मन को बहलाने का सहारा हैं तू,
मेरी प्यारी पुस्तक, तू न होती तो
शायद मेरी दुनियाँ न होती।
सारे ग़मों से दूर
मैं तुझमें खो जाती हूँ,
और खुशियों के बादल से
घिर जाती हूँ।
मेरी प्यारी पुस्तक, तू न होती 
तो शायद मेरी दुनियाँ न होती।

नौशीन परवीन - रायपुर (छत्तीसगढ़)

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