मैं एक पतंगा हूँ ,
दीप की लोह पर जलना चाहता हूँ ।
अपने अटूट प्यार में ,
सर्वस्व मिटाना चाहता हूँ ।
जल की बूँद सागर में ,
उसी तरह मिल जाना चाहता हूँ ।
मैं एक पतंगा हूँ ,
दीप से आलिंगन चाहता हूँ ।
अपना अरमान लूटाकर ,
प्रेम का पैगाम देना चाहता हूँ ।
चाहे कितनी ही दूरी हो ,
मगर दिल में दुलार चाहता हूँ ।
मैं एक पतंगा हूँ ,
तेरी झलक पर न्योछावर होता हूँ ।
मेरी बस यहीं ख्वाहिश ,
सब कुछ मिट जाना चाहता हूँ ।
चाहे जो भी हो मजबूरी ,
तू मेरा और मैं तेरा होना चाहता हूँ ।
कानाराम पारीक "कल्याण" - साँचौर, जालोर (राजस्थान)