अतीत भी अधूरी वर्तमान भी अधूरा - डायरी - शेखर कुमार रंजन

दिल मचल गया था यार वो इतनी चंचल जो थी
छोटी छोटी बातों पर उसका खिलखिलाकर हँस उठना मेरे दिल में उसके लिए प्यार का एक आनन्दमय अहसास पल गई थी।

आंतरिक खुशी से तो तब फुले नहीं समा रहे थे हम जब कमीने दोस्तों ने कहाँ की वो तुम्हारी हैं तुम्हें ही देखती रहती हैं और तुम्हें बहुत पसंद करती हैं ऐसा लगता रहता है क्योंकि मैंने कई दफा बात करते भी सुना था। तब उस झूठ को भी मैं सच समझ बैठा था और दोस्तों के बात सुनकर ही सच्ची मोहब्बत हो गई थी उससे। आखिर हीर राँझा लैला मजनू की कहानियाँ जो पढ़ रखा था। शायद तब वो मुझे ठीक से जानती भी नहीं रही होगी तब से ही दोस्तों ने उसके नाम पर पार्टी लेना शुरू कर दिया था। कमीने झूठ बोलते थे कि उसको तुम्हारे बारे में बात करते सुना हैं। किन्तु दोस्तों की बातों को सुनकर पूरे शरीर में पता नहीं क्यों गुदगुदी लगने लगता था अब तो सारे काम धंधे छोड़कर दोस्तों के बीच रहना ही अच्छा लगता था ताकि उसके बारे में कुछ सुन सकूँ। आशिकों के किताब में शायद इसे ही प्यार कहते हैं और बेशक़ मुझे भी प्यार हो गया था।


उसके सामने होने मात्र से मुझमें ऊर्जा का संचार होने लगता था उसको देखने मात्र से ही मेरा दिल जोरों से धड़कने लगता था और शायद उसे अब तक नहीं पता था कि कोई उसपे मरता है। उसका मन पानी की भाँति स्वच्छ था जो भी मन में आता बोल कर हँसने लगती उसकी नजर कहीं एक जगह पर नहीं टिकती थी क्योंकि मैं उसे ही देखता रहता और पल भर के लिए भी उसकी नज़र मेरी ओर होती तो मैं अपनी नजर को घबराते हुए इधर उधर कर लेता।


वो सामने होती तो मानो समय जल्दी जल्दी बीत जाती थी पर दिल करता था कि समय थम ही जाएँ दिल करता ऐसे ही बैठे रहे ये समय बीते ही नहीं उसके जाने के बाद से ही फिर से उसी समय के आने का इंतज़ार करना मुझमें एक अलग सी आनन्द का अहसास कराती थी। अब तो कमीने दोस्तों ने तो यहाँ तक कह दिया था कि दोस्त उसकी ओर कोई नजर उठाकर नहीं देखेगा वरना तुम्हारा दोस्त उसे छोड़ेगा नहीं तुम चिंता मत करना।
दोस्तों की बात मुझमें हिम्मत पैदा कर देता था और तब मैं ताकतवर भी हो जाया करता था अब तो मैं उसे पूर्णरूपेण अपना मान चुका था।


ना जाने क्यों उसका नाम सुनकर ही दिल जोड़ो से धड़कने लगता था। सच पूछो तो बात मैंने उससे आज तक नहीं करी थी और यार अब क्या बताऊँ जिस दिन उसने सिर्फ मुझसे बात करी कसम से सारी रात मैं सो नहीं पाया था।
उसके मुख से अपना नाम सुनकर मुझमें कितना विचलन पैदा हुआ था शायद इसके लिए मैं उचित शब्दों का चयन भी नहीं कर पा रहा हूँ मानो जैसे बड़ा सा समुद्र में कोई छोटी सी कंकर फेंककर पूरे समुद्र में हलचल पैदा कर दिया हो। अब थोड़ा बहुत उससे बातें करना मैं प्रारंभ कर दिया था हाँ ये बात अलग थी कि उतनी देर तक मेरी साँसे बहुत जोड़ से चलती रहती थी। मैं उसके पिता व गाँव वालों से बहुत ही डरता था पर क्या करें दिल फिर भी उसी पर मरता था। दोस्तों ने मुझे डरते देख मुझमें हिम्मत भरने का कोई भी मौका नहीं छोड़ता कहता दोस्त फ़िक्र मत करो जो भी हम से टकरायेगा वो चूर चूर हो जायेगा पर शायद इस मामले में मुझ में ज़रा सा भी हिम्मत नहीं था। वरना न जाने सैकड़ों बार उसे प्रपोज़ करने का प्लान बनाने के बाद उसे पोस्पांड क्यों करता।


दोस्तों के ताने सुनने को मिलते थे कि तुझसे नहीं होगा तू मर्द नहीं है लड़कियों से डरता है। लेकिन एक दिन ऐसा भी आया कि मैं उसे प्रपोज़ करने का पूरा मन बना लिया किन्तु आज एक अजीबोगरीब घटना घट गई थी जिसको लेकर वो बहुत दुखी थी औऱ ऐसी स्तिथि में मुझे प्रपोज़ करना नागवार लगा और एक बार और पोस्पांड कर दिया। उसके बाद न जाने कितने ही बार प्लान बनाता रहा और फेल हो जाता रहा किन्तु अब मेरे और उसके अफ़ेयर की किस्से लगभग सभी दोस्तों ने सुन रखें थे। और उसे शायद अब तक कुछ भी नहीं पता था। किन्तु एक दोस्त ने उसे फोन करके पूछ दिया कि क्या आप उससे प्यार करते हैं यह बात दूसरे के मुख से सुनकर उसे गुस्सा आ गई थी और शायद सॉक भी लगा हो, क्योंकि इससे पहले मैंने कुछ भी नहीं कहा था उसे। बात कुछ यू हुई कि वो मुझे कुछ नहीं बताई और वो सारी बातें अपनी मम्मी को बता दी और मम्मी आग बबूला होकर मेरे दोस्त के कार्य क्षेत्र पहुँच कर उसे खरी खोटी सुनाती हुई धमकी दी कि मेरी बेटी से अलूल जलूल बात ना करें, और तब तक मैं सारी बातों से अनभिज्ञ था। कई दिन बितने के बाद मुझे पता चला इस घटना के बारे में मुझे समझ ना आ रहा था कि मुझे खुश होना चाहिए या मुझे तकलीफ़ होनी चाहिए। अब मैंने मन बना लिया था की उसे प्रपोज कर दूँगा और इस बार मैंने कॉल करके उसे प्रपोज़ आखिरकार कर ही दिया। किन्तु वो सीधा नही तो स्वीकार की और ना हीं मना कि वो कहने लगी मै वैसी लड़की नहीं हूँ मेरे घर में यह सब नहीं चलता है वगैरह वगैरह अब सात वर्षों से जो मन में संयोग रखें थे। वे सारी बातें आज उससे कह चुके थे किंतु फिर भी हम असमंजस में थे कि आखिरकार वो मुझसे प्यार करती है या नहीं। किन्तु फिर भी अब उससे कन्फर्म नहीं हो सकता था। क्योंकि वो यदि सीधे सीधे मना कर देती तो मैं टूट जाता मुझे इस बात की डर सता रही थी और यहीं कारण था कि अब फिर से हम दोनों कभी उस विषय में बातें नहीं किये किन्तु अब यह बात सिर्फ वो और हम जानते थे कि हमारे बीच अब कुछ भी रहस्य बनकर नहीं रह गया है।


धीरे धीरे मेरे सारे दोस्तों व उसकी सारी सहेलियों को भी पता चल गई थी कि इन दोनों का अफेयर चल रहा है किंतु ये न तो हम कन्फर्म थे और ना ही वो। अगर वे कॉलेज आती तो मुझे मेरे दोस्तों के कॉल आ जाते थे साथ ही जहाँ तक मुझे पता है कि उसकी सहेलियाँ भी मेरी चर्चा उससे किया करती थी। उसे कोई कही पर देख ले तो मुझे एक बार अवश्य बता देता था कि वो अभी इस स्थान पर है शायद मेरे दोस्तों के साथ-साथ उसकी सहेलियों का भी मन था कि ये दोनों एक हो जाएँ। पता नहीं मैं इतना ज्यादा डरता क्यों था? मैं हमेशा ही सोचता कि उसे रोककर उससे बात करूँगा ये कहूँगा वो कहूँगा किन्तु मैं उसे आते देखकर दूसरी ओर मुड़ जाया करता था सच पूछो तो मेरी हिम्मत ही काम नहीं किया करता था। यदि कभी थोड़ा बहुत हिम्मत जुटा कर रोक भी दिया करता तो उससे बात ही नहीं कर पाता था। मुझे उसकी आवाज सुनकर ही मेरा दिल जोड़ो से धड़कने लगता मुझे कुछ कुछ होने लगता था।


मैं उसे एक बार और हिम्मत जुटाकर प्रपोज़ कर दिया किन्तु वो पिछले बार की भाँति ही जबाब दी मुझे समझ ही नहीं आया कि आखिरकार ये मुझसे प्यार करती भी है कि नहीं इसी बीच मुझे एक बात सुनने को मिला कि उसका अफ़ेयर किसी लड़के से चल रहा है जो उम्र में उससे काफी बड़ा था जो उसे एक कॉलेज में दाखिला दिलाया था। यह सुनकर मुझे बहुत ही बुरा लगा था फिर भी मैंने उससे बिना कुछ छुपाए उससे सारी बातें कह दी कि क्या यह बात सही है की तुम्हारी अफ़ेयर किसी लड़के से चल रही हैं यह बात सुनकर वो बोली ऐसा कुछ नहीं है किंतु वो मुझे प्रपोज़ किया था और वो मुझे आगे की पढ़ाई में इकोनॉमिकल स्पोर्ट भी किया है और ये बात मेरी मम्मी को भी पता है। खैर मैं उससे इतना ज्यादा प्यार करता था कि मुझे इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि कौन उसे चाहता है और कौन नहीं। एक दिन की बात है मैं उसे फिर से प्रपोज़ कर दिया किन्तु इस बार वो मुझे सीधा सीधा मना कर दी थी मैं अंदर से टूट सा गया था और सोच रहा था कि आठ वर्षों तक हम एक ऐसे लड़की के पीछे थे जो मेरे इमोशन को समझती ही नहीं है मुझे खुद पर बहुत ही गुस्सा आ रहा था और वो बोल रही थी कि हम एक अच्छे दोस्त तो हो सकते हैं। मैं उसे इतना जल्दी नहीं खोना चाहता था इसीलिए मैंने कहाँ हाँ ठीक है किंतु हम दोनों एकदूसरे से कुछ भी नहीं छुपायेंगे और एकदूसरे से कभी झूठ भी नहीं बोलेंगे तब वो हामी भरते हुए बोली ठीक है किन्तु कुछ दिनों तक बात करने के बाद वो मुझे अपनी समस्या बताई की मुझे कुछ पैसों की आवश्यकता है। क्या आप दे सकते हो? मैंने हामी भर दिया क्यों नहीं? और मैं उसके एकाउंट पर पैसे भेज दिए। वो बोली मैं लौटा दूँगी मैंने वापस लेने से मना कर दिया।


कुछ दिनों के बाद उसकी कॉल आई कि वो शादी कर रही हैं यह सुनकर मुझे बहुत ही तकलीफ़ हुई थी कि आखिरकार कोई किसी को इतना नजरअंदाज कैसे कर सकता है वो भी उसको जो उसके लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहता है। हाँलाकि उसकी छोटी बहन ने उसकी शादी वाली बात को खंडित कर दी थी। एक बार फिर मैंने उसे प्रपोज़ कर दिया किन्तु अब उसके लिए नहीं कहना काफी आसान हो चुका था वो झठ से मना कर दी और दूसरे लड़के के बारे में बात करने लगी किन्तु आज मुझे बहुत गुस्सा आ चुका था जिसके कारण मैने उसे गाली दे दिया यह बात उसे बुरा लग गई और वो मुझसे बात करना बंद कर दी। किन्तु फिर गुस्सा शांत होने के बाद मैंने उससे माफी माँग लिया और फिर से हमदोनों के बीच बात होती रही और आज हमदोनों दस वर्षों से एक दूसरे को जानते हैं किंतु आज भी मैं उसे प्रपोज़ करने का एक भी मौका नहीं छोड़ता और आज भी वो मुझे यह कहकर टाल देती है कि आप अच्छे हैं आपको कोई भी अच्छी लड़की मिल जायेगी। मैं हर बार का उसका जबाब जानता हूँ कि आखिरकार नहीं ही होगा किन्तु फिर भी हर बार वहीं प्रश्न करता हूँ कि कहीं इस बार हाँ बोल दे। अब उस पगली को कौन समझाएँ की मुझे कोई दूसरी अच्छी लड़की नहीं चाहिए हालाँकि अब शायद उसमें वो लड़की भी नहीं बची है जिससे मैंने कभी बेइंतहां मोहब्बत करी थी। मुझे आजतक ये समझ नहीं आया कि उसको खुद से जोड़ना जो मैं चाहता था वो मेरी प्यार थी या जिद्द।


शेखर कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)


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