प्रत्यक्ष - कविता - गणपत लाल उदय

ज़िन्दगी अपने लिए जीना, यह एक आम बात। 
लेकिन अपने देश के लिए जीना, ये ख़ास बात।।

प्रत्यक्ष में हमने देखा, मौत को गले मिलते हुऐ।
सीमा पर जवानो का, अपना बलिदान देते हुऐ।।

यहाँ पर राख भी रख दो, तो पारस बन जाता।
देश सुरक्षा में जो क़ुर्बान होता, अमर हो जाता।।

अपना दर्द  छुपाकर भी, मुस्कराते रहते है हम।
ना जाने धरती का कौनसा, कर्ज़ चुका रहे हम।।

बडी मुश्किल है, जिन्दगी की सच्चाई समझना।
प्रत्यक्ष में ऐसी जगह, अपने को लाकर देखना।।
 
गणपत लाल उदय - अजमेर (राजस्थान)

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