खोटा सिक्का - कविता - तेज देवांगन

जिसका कोई सार नहीं, 
तल नहीं, ना पार नहीं,
टूट कर जो बिखरे,
उसका कोई ख़्याल नहीं।
मै वहीं खोटा सिक्का हूँ,
हाँ ज़िंदगी मै तेरा हारा हुआ, हिस्सा हूँ।
जो अध लिखे कहानियों में,
असफलता की जूबानियों में,
दिख जाए, वहीं किस्सा हूँ।
हाँ ज़िंदगी मै तेरा हारा हुआ, हिस्सा हूँ।
जो बेशुरे आवाज़ों में,
जो टूटे हुए हर साजों में,
मुंतशिर हुए पड़े, किस्सा हूँ।
हाँ ज़िन्दगी मै तेरा हारा हुआ, हिस्सा हूँ।

तेज देवांगन - महासमुन्द (छत्तीसगढ़)

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