डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली
चुभन - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
शनिवार, दिसंबर 19, 2020
विपरीत समय होता जीवन,
अवसाद विविध होते हैं मन,
लघु बातें भी दे रही चुभन,
सब अपने भी खो जाते हैं।
नैराश्य मनसि हो उद्दीपन,
प्रतिकूल असर होता चिन्तन,
संदेह सदा घर कर चितवन,
आवेश अनल जल जाते हैं।
छल छद्म कपट मिथ्या वादन,
लखि धोखा ठग लम्पट जीवन,
सच राह कठिन हो परिचालन,
धीरज साहस खो जाते हैं।
संघर्ष सरित बहता अविचल,
बाधाएँ नित करतीं निर्बल,
तम घना निराशा दुर्गम पथ,
खो होश जोश भरमाते हैं।
अभिलाष नया यायावर मन,
नित प्रगति समुन्नत होते हम,
नवनीत मधुर सद्मीत स्वजन,
विपरीत काल खो जाते हैं।
उपहास पात्र चुभता जीवन,
पुरुषार्थ स्वयं झुकता गर्दन,
असहाय स्वयं पथ कर दर्शन,
आतप्त हृदय चुभ जाते हैं।
परमार्थ सकल जीआ जीवन,
आगत आपद कहँ अपनापन,
कर दफ़न लक्ष्य उन्मुक्त गगन,
उपदेश टीस दे जाते हैं।
बेदर्द जख़्म देते हैं गम,
चूभन बन टीस लगा जो मन,
असह्य पीड़ा समतुल्य मरण,
वे जीवन पा पछताते हैं।
राहत आपद नित चाह हृदय,
रिश्ते यार हों कोई सदय,
मुश्किल में होती मीत परख,
अफ़सोस सभी ख़ो जाते हैं।
कहँ न्याय धर्म कहँ त्यागी जग,
कहँ नीति प्रीति मानवता रग,
पहचान मात्र सब स्वार्थ सिद्ध,
अपने सपने बन जाते हैं।
कलि मात्र छलावा अपनापन,
बस धूम मची जग धन पद जन,
परिहास विपद दे सदा चुभन,
यादें अतीत रह जाते हैं।
हमराह कहाँ पाएँ कलियुग,
तज प्रेम मृदुल खो लालच रग,
नित नहीं समान रहे जीवन,
दुर्दीन तिमिर छँट जाते हैं।
नव राह समझ हर एक चूभन,
होगा जीवन उत्थान सुगम,
हो धीर वीर साहस संबल,
जय विजय कीर्ति जग गाते हैं।
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