हमसफ़र के बिना - कविता - रमाकांत सोनी

तुम बिन रहना भी भला
क्या रहना,
सफ़र कटता नहीं
हमसफ़र के बिना।


खिलकर गुलशन हमारा
गुलज़ार हो गया,
दिल के जुड़ गए थे तार
और प्यार हो गया।
ज़िंदगी लगती ख़ामोश
तुम्हारे बिना,
सफ़र कटता नहीं
हमसफ़र के बिना।।


सारे गीत संगीत महक जाते है,
तेरे आने से साज संवर जाते हैं।
बज उठे दिल के सितार
आए सावन का महीना,
सफ़र कटता नहीं
हमसफ़र के बिना।।


उमड़ता अथाह सागर सा स्नेह,
सातों जन्मों का यह अटूट नेह।
प्रेम पूजा है चारों धाम 
मक्का और मदीना,
सफ़र कटता नहीं
हमसफ़र के बिना।।


बीच राह पर जब कभी
मुश्किलें आ जाती है,
तेरा मिलता जब जब साथ
समस्या सारी हल हो जाती है।
अंदाजों में बेशूमार
जैसे कोहिनूर नगीना,
सफ़र कटता नहीं
हमसफ़र के बिना।।


रमाकांत सोनी - झुंझुनू (राजस्थान)


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