वक़्त की पुकार - कविता - आशुतोष यादव

खामोशी का ताला हटा,
कर दो जज्बातों की बारिश।

आँच न आये कुल की जमीर पर,
उजागर कर वंशज की परवरिश।
 
बहुत तपे उल्फ़त की तपिश में,
वक़्त की सुन ले अब सिफारिश।

कोई नही सगा चलाने वाला कटारी,
खुद ही है वंशज तू खुद ही है वारिस।

आया वक्त अंगारों पर चलने का,
उतर अब रणचण्डी में, है ये गुजारिश।

आशुतोष यादव - बलिया (उत्तर प्रदेश)

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