मैं और तुम - कविता - शेखर कुमार रंजन

मैं और तुम कभी हम ना हो पायेंगे
सपने हमारी कभी पूरे न हो पायेंगे
प्यार भरी गीत संग हम नहीं गायेंगे
आप हो अमीर हम अमीर हो ना पायेंगे।

आप करती ब्रश घर पर हम दातुन ही कर पायेंगे
नाश्ते में आप ब्रेड आमलेट बड़ी चाव से खायेंगे
हम तो बासी खाने को भी गर्म कर खा जायेंगे
मै और तुम इसीलिए हम ना हो पायेंगे।

आप पर्दा इस्त्री करके दरवाजे पर लगायेंगे
फटा हुआ चादर ही अपना पर्दा बन जायेंगे
आपके रिश्तेदार तब मज़ाक मेरा उड़ायेंगे
मैं और तुम इसीलिए हम हो ना पायेंगे।

आप कपड़े रोज इस्त्री करके ही पहनेंगे
मेरे कपड़े तो तकिये के नीचे इस्त्री होंगे
इस तरह हमदोनों के मेल नहीं खायेंगे
मैं और तुम इसीलिए हम हो ना पायेंगे।

आप अंग्रेजी स्कूल में पढ़ी अंग्रेजी ही बोलेंगे
हम हिंदी माध्यम वाले खुद में हिंदी घोलेंगे
सोने को गद्देदार बिस्तर आप पलंग पर खोजेंगे
हमें क्या हम तो अखड़ा चटाई पर भी सो लेंगे।

मैं और तुम कभी हम ना हो पायेंगे
सपने हमारी कभी पूरे ना हो पायेंगे
प्यार भरी गीत संग हम नहीं गायेंगे
आप हो अमीर हम अमीर हो ना पायेंगे।

शेखर कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

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