वासना विधिलेख का उपहार है - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

वासना    विधिलेख  का  उपहार है,
चारुतम    नवसृष्टि  का  आधार  है।
आश्रम व्यवस्था का सोपान समझो,
चिर   मानव  जाति  का  पुरुषार्थ है। 

वासना    दाम्पत्य   जीवन  चमन  है,
मधुरिम  ललित  प्रीति आनन्द सर है।
चिर अभिलाष हृदय उल्लास समझो,
नव  भविष्य  जीवन नया  आरम्भ है। 

वासना  गंग  सम   पावन  विमल  है,
चन्द्रिका  निशिचन्द्र सम स्वच्छतर है।
शृङगार  मधु  मिलन दाम्पत्य समझो,
स्त्री पुरुष   रिश्ते   मधुर   आगाज  है। 

वासना   न   मात्र  जग  सुखभोग  है, 
न  काम  नर नारी  तन   उपभोग  है।
सामाजिक रीति का उपहार   समझो,
प्यार   नर   नारी   हृदय    उद्गार    है। 

पर, आज दुष्काम रत कुछ  लोग हैं,
वासना उनकी  नज़र  बस  भोग   है।
लूटते   जिश्म  जो  निर्लज्ज  समझो,
दरिंदे   कातिल  मनुज पशु  दनुज हैं।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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