यह बिहार है न कि कोई ताल तलैया,
ऐसा प्रतीत होता है,
बिहार में विकास नहीं सिर्फ,
कमल पुहुप और बाण ही दिखते हैं,
बाण का जमाना अब तो गया,
बाण से पहले कुरूक्षेत्र के,
मैदान में अरूंतुद पर प्रहार किया जाता था,
बिहार के लोगों को शमन चाहिए,
हम बाण से किसी से नहीं लड़ते हैं,
बिहार को तो सिर्फ विकास चाहिए,
पहले नहीं थीं लाइट और बिजली,
और बल्ब का भी नहीं चलन था,
तो कंदील दीये जलाकर ही पहले के,
लोग हर कार्य को करते थे,
अपना नाम कंदील दीये की मदद से ही,
तवारीख में दर्ज करते थे,
कमल पुहुप तो ताल तलैया में सदैव खिलते हैं,
बिहार में गुरू गोविन्द जी जन्म लेकर,
सिक्खों के दसवें गुरू बने,
आर्यभट भी बिहार में ही जन्म लेकर,
जीरो की खोज किये,
राजेन्द्र प्रसाद भी बिहार में जन्म लेकर,
जिसने पूरे भारतवर्ष के,
लिए दो बार राष्ट्रपति चुने गये,
अगर बिहार को उच्च राज्य का,
दर्जा दिलाना चाहते हो,
अगर बिहार को सब पर,
भारी देखना चाहते हो तो,
कंदील का प्रयोग फिर से करो,
हम कमल भी देखना चाहते हैं,
हम रक्षा के लिए बाण भी पकड़ना चाहते हैं,
किंतु हम कमल पुहुप को,
ताल तलैया और कर्दम में ही देखना चाहते हैं,
जब मेरा बिहार पर संकट आये,
तो हम बाण से ही ढावा बोलेंगे,
लेकिन बिहार में इतनी निर्धनता है,
बिहार में इतना दुर्भिक्ष है,
बिहार में इतने बेरोजगार लोग हैं,
बिहार में तो सिर्फ हिंसा होती है,
हर सड़क पर गढ्ढे और कमल खिलते हैं,
जब पावस होती है तो चहुँओर कमल ही दिखते हैं,
तो भला कौन बिहार पर आक्रमण करेगा,
अतएव कंदील का प्रयोग फिर से करो,
बिहार का पताका व्योम में फहराओ,
और अपना नाम कंदील के जरिये,
पूर्व लोगों की भांति तवारीख में रचो।।
मो. जमील - अंधराठाढ़ी, मधुबनी (बिहार)