सब चलता है - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी

एक नेता ने
मुझसे कहा
लिख दो झूठी
हाजिरी
कम हाजिरी पर
तुम्हे नोटिस मिलेगा
और मुझे गेंहू व दाम काम मिलेगा।
मैंने कहा गलत
हाजिरी देना अपराध है
वो बोले मास्साव सब चलता है।
मेरे अफसरों 
की कार गुजारी ने
मुझे अपराध बोध कर दिया
मेरे मन को किसी चोरों की
तरह साँप सा सूंघ गया
मेरे सामने अब विकल्प था।
नोकरी बचाऊ
या ईमानदारी निभाऊ
क्योकि ऊपर चल रहा था
बंदर बांट
मेरी आत्मा बोली 
यह सब क्यो करता है
पर मन बोला सब चलता है।
इस चला चली में
ईमानदारी मेरी मुठठी से
रेत की तरह खिसक रही थी।
मैंने अपने बड़े अफसरों से कहा
झूठी हाजिरी नही दूंगा
वो हँस पड़े जैसे में पागल था
ओर बोले भाई आँखे बंद करो
पागल मत बनो।
क्योंकि सब चलता है।

रमेश चंद्र वाजपेयी - करैरा, शिवपुरी (मध्य प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos