नारी सम्मान - कविता - गणपत लाल उदय

नारी तुम हो बहुत महान
सभी करते तेरा गुणगान।
तुम ही हो करूणा का रूप 
सहनशील, अन्नपूर्णा स्वरुप।।

तुमसे ही मानव जग आया
धरती पर शान-शोकत पाया।
जगत- जननी कहलाती माँ
एक धरती और दूसरी  माँ।।

सरस्वती का रूप है  तुझमे
शैलपुत्री, कात्यायनी तुझमे।
माँ दूर्गा, महालक्ष्मी स्वरूपा
तुझमे ही गोरा, काली, कुश्माड़ां।।

आज पताका लहर  रहा हैं 
सब जगह परचम हो रहा हैं।
तुमने वो सब कर दिखलाया
सोच सके ना सपने में साया।।

पर्वत, पहाड़, आकाश, पाताल  
जल, थल, नभ जगह घूम आया।
राजनीति, अभिनेत्री और  मंत्री
बनकर घूमे तू आज कवयित्री।।

बिटियां, बीबी और माँ हो तुम 
घर में सबकी हमजान हो तुम।
गणपत करता तुम सबको नमन
कोई है माँ और कोई है  बहन।।

गणपत लाल उदय - अजमेर (राजस्थान)

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