समझदार मुहब्बत - कविता - भागचन्द मीणा

मैं निहारता रहूँ तुम्हें 
और सुबह से शाम हो जाए,
चर्चे मुहब्बत के अपने 
शहर भर में आम हो जाए।

हम खोऐ रहें अपनी 
प्यार भरी बातों में इस कदर,
तुम्हें घर जाने की हो फ़िक्र 
और बहुत देर हो जाए

तुम किसी कारण वश 
समय पर मिलने न आ पाओ
और तुम्हारे इंतजार में 
बैचेन मेरा बुरा हाल हो जाए।

घर वाले लगाते रहे बन्दिशे 
हमारे मिलने पर और
ना मिल पाने से हमारी जान
निकल सी जाए।

तुम कहो चलों कहीं 
दूर भाग चलते हैं हम और
मैं कहूँ क्यु ना घर वालों को 
मना लिया जाए।

हमारे प्यार में हम तो 
शामिल है ही क्यो ना!
घर वाले भी इस खुशी में 
शामिल हो जाए।

भागचन्द मीणा - बून्दी (राजस्थान)

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