सफलता का मूल मंत्र - लेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला

भारत के प्रधानमंत्री एवं प्रसिद्ध साहित्यकार स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेई जी की पंक्तियां याद आ गयीं 
"छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता।
टूटे दिल से कोई खड़ा नहीं होता।"
यदि कोई व्यक्ति किसी कारण बस अपना लक्ष्य प्राप्त करने में विफल हुआ हो तो निराशा के समंदर में गोते लगाने की बजाय यह विचार मन में लाना चाहिए कि विफलता में ही सफलता के सूत्र  छिपा है।

यह सोचना चाहिए कि मानव जीवन अनमोल है और कुछ विशेष करने के लिए ही जीवन प्राप्त हुआ है।
सफलता, असफलता के पीछे नहीं जाना चाहिए और अपने जीवन को ही ईश्वर का अनमोल उपहार मानना चाहिए।
ऐसे बहुत से कार्य ईश्वर सौपे हैं जिनकी जिम्मेदारी उस व्यक्ति के ऊपर होगी, उनको पूरा करने का रास्ता भी ईश्वर अवश्य देगा, इस विचार के साथ उसे असफलता के तनाव से मुक्ति मिलेगी और वह फिर नई राहों की ओर मुड़ सकेगा।
वह अपनी परिस्थिति से समझौता कर नए रास्तों पर चल सकेगा व सफलता के नए आयाम नये सूत्र खोज सकेगा और  वह एक दिन  निश्चित ही सफल होएगा।

आज के व्यस्त एवं प्रतियोगिता पूर्ण जीवन में यह बहुत बड़ा सवाल है कि सफल कैसे बने या फिर लोगों के दिलों पर राज कैसे करें।
बहुत से लोगों को तो यह सवाल घोर निराशा हताशा व मानसिक तनाव में जीवन जीने के लिए विवश कर देता है, लेकिन यह बात हम सब को समझने की जरूरत है कि किसी को भी सफलता अनायास ही नहीं मिलती, बल्कि सफल व्यक्ति बनने के लिए योजनाबद्ध तरीके से विशेष प्रयत्न करने होते हैं।
फिर सफलता अगर हाथ लग भी जाए तो उसे बनाए रखने के लिए निरंतर प्रयास करने चाहिए।

सफलता और असफलता बहुत हद तक  व्यक्ति की सोच और उसके जीवन जीने के तरीकों पर निर्भर करती है, क्योंकि जिंदगी  तो हर कोई जीता है पर जिंदगी जीने का सब का तरीका अलग अलग होता है। कोई बंधन नहीं चाहता तो कोई दूसरों को बांध कर रखना चाहता है, कोई अपनी इच्छाओं का तो कोई दूसरों की इच्छाओं का अतिक्रमण करना चाहता है, कोई खुद को दोषी ठहराता है तो कोई दूसरों को।
नतीजन लोग अपनी ही राहों के मकड़जाल में फंसकर भीड़ में कहीं खो जाते हैं।
ऐसे में मन मुताबिक सफलता हासिल करने के लिए जिस मूल मंत्र को जीवन में अपनाने की जरूरत होती है वह कहीं नजर नहीं आता और व्यक्ति अवसाद में चला जाता है।

हमें अवसाद का शिकार नहीं होना चाहिए, यदि जीवन है तो दुख सुख दोनों से साक्षात्कार तो करना ही होगा।
अध्यात्मिक ज्ञान इस कार्य में हमारी विशेष मदद करता है।
यदि हम अध्यात्मिक समझ के साथ विकास और परिपक्वता प्राप्त करते हैं तो कभी भी अपने जीवन को समाप्त करने की नहीं सोचेंगे न अवसाद ग्रस्त होंगे। अध्यात्मिक ज्ञान की ताकत हमें अवसाद में जाने से रोक लेगी। हताशा से बचने का सबसे बड़ा सूत्र तो यही है सबसे पहले कोई भी परिस्थिति हो उसके  प्रति अपना दृष्टिकोण बदलें। कैसी भी परिस्थिति आपके सामने आए उसके आगे आप घबराएं मत। कोई भी परिस्थिति हो अपना दृष्टिकोण सकारात्मक रखें। किसी भी विकट परिस्थिति से उबरने की क्षमता को अपने अंदर विकसित करने का प्रयास करें एवं धैर्य के साथ यह सोच रखें की स्थिति जरूर बदलेगी। आशाओं को समाप्त नहीं होने देना चाहिए। हताश हमारी आत्मा की दुर्गति करती हैं।
अतः अपनी जिजीविषा को प्रबल और प्रखर बनाए रखना चाहिए। यह सोचना चाहिए कि आगे सब ठीक हो जाएगा।

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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