अबकी दीवाली से पहले - कविता - सन्तोष ताकर "खाखी"

फुर्सत के दो पलो में,
वो खुशियों कि मुलाक़ात
याद आ गई इस दीवाली से पहले,

मेरी हर रौनक तुझसे थी
इस बेदर्द बिछड़न से पहले।
मुझे याद है वो पल आज भी
मुलाक़ाते खूब हुई थी,
अपनी शादी से पहले।

वो कॉर्नर वाले का जूस,
कभी चाय की चुस्कियां,
गले वाली झप्पिया,
मेरी आँखों व गालों पे पप्पिया।
मुझे ना पाने के डर से रोना,
वो किसी के देख लेने का डर,
मुझे देख मुस्कुराना,
सब सामने होता था
हर मुलाकात से पहले।

वो तेरा मेरा मिलना,
एक दूजे का होने से पहले।
तेरी मेरी आदत का हो जाना, 
वो शादी से पहले ही
चुपके से विश्वास के सात फेरे,
वो हसीन वादिया, वो सफर,
वो तेरे संग हर पल,
सब याद आए आज,
मेरे रोने से पहले।

वो स्कूल व कॉलेज में
हर बार टॉप करना,
जी भर दिल के अरमान बयां करना,
बुलंदियां छूने का सपना होना
हर परिणाम से पहले।

वो माँ से पहले मातृभूमि को प्यार झलकना,
देश की फौलाद होना, वो हरकते शरारती,
वो कसरते लतपती।
सब याद आयी
तेरे फौजी होने से पहले।

तेरे चेहरे की चमक, तेरे वो हौसले,
गाँव में सबसे मिलकर आना,
हँसते - हँसाते रहने की सलाह,
बच्चो के पिता होने से पहले ही
देश के लिए जवान होना।
उस भूमि पर मर मिटने का सपना होना,
यारों में फौलादी खून भरना,
वो हर सुबह राम से पहले
भारत माता के जयकारे लगाना।
मेरी हर रंगोली में
मातृभूमि की तस्वीर बनवाना,
सब याद आया
अबकी दीवाली से पहले।

वो कश्मीरी रणभूमि में जाने से पहले,
तेरा लौट आने का झूठा सा वादा,
इस बेदर्दी जंग में मेरे माथे की
बिंदी, सिंदूर, काजल सबका
तेरे ही साथ चले जाना।
देश के एक जवान के संग
मेरे घर का इकलौता चिराग़ बूझ जाना,
सबने जी भर तोड़ा मुझे
अबकी दीवाली से पहले।

सन्तोष ताकर "खाखी" - जयपुर (राजस्थान)

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