गुनगुनी धूप - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला

गुनगुनी धूप अब मन को भाने लगी।
फिर से पीहर में गोरी लजाने लगी।
अब सुहानी लगे सर्द की दुपहरी।
मौसमी मयकशी है ये जादू भरी।
ठंडी ठंडी हवा दिल चुराने लगी।
गुनगुनी धूप अब मन को भाने लगी।
पायल ने छेड़े हैं रून झुन तराने।
दर्पण से दुल्हन लगी है लजाने।
याद उसको पिया की सताने लगी।
गुनगुनी धूप अब मन को भाने लगी।
सर्द का मीठा मीठा सुहाना समा।
फूल भौंरें  हुए हैं सभी खुशनुमा।
रुत मोहब्बत की फिर से है छाने लगी।
गुनगुनी धूप अब मन को भाने लगी।
फूलों पे यौवन है फसलों में सरगम।
भंवरों का गुंजन है मधुबन में संगम।
प्यार के रंग तितली सजाने लगी।
गुनगुनी धूप अब मन को भाने लगी।
है कहीं पर प्रणय तो कहीं है प्रतीक्षा।
कहीं दर्द बिरहन का लेती परीक्षा।
कहीं गीत कोयल सुनाने लगी।
गुनगुनी धूप फिर से है भाने लगी।
फिर से पीहर में गोरी लजाने लगी।

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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