सीमाओं से परे है प्रेम - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला

प्रेम से तो ईश्वर को भी प्राप्त किया जा सकता है।
कहते हैं ढाई अक्षर प्रेम के पढ़े सो पंडित होय,
वाकई निष्काम एवं निस्वार्थ प्रेम से सभी कुछ प्राप्त किया जा सकता है। प्रेम में तो परमात्मा का वास है। प्रेम का परिष्कृत रूप श्रद्धा है ,परिमार्जित प्रेम ईश्वरप्रदत्त होता है।
प्रेम इंसान की आत्मा में पलने वाला एक पवित्र भाव है।दिल में उठने वाली भावनाओं को आप बखूबी व्यक्त कर सकते हैं किंतु यदि आप हृदय में किसी के प्रति प्रेम है तो आप उसे अभिव्यक्त कर ही नहीं सकते, क्योंकि यह एक एहसास है और एहसास बेजुबान होता है उसकी कोई भाषा नहीं होती।


प्रेम की मजबूत डोर ही तो हर रिश्ते की आधार शिला होती है, चाहे वह भाई बहन हो माता पिता व सन्तान हो या दोस्त। दो अलग अलग परिवारों में जन्मे दो लोग प्रेम की मजबूत डोर में बढ़कर जीवनसाथी बन जाते हैं और सारा जीवन एक दूसरे के लिये समर्पित रहते है।


जहाँ प्रेम है वहाँ समर्पण है जहाँ समर्पण है वह अपनापन है जहां यह भावना रूपी उपजाऊ जमीन है वही प्रेम का बीज अंकुरित होता है।
प्रेम ही जीवन की आधारशिला है। प्रेम में बहुत शक्ति होती है जिसकी सहायता से सब कुछ संभव है, तभी तो प्यार की बेजुबान बोली जानवर भी समझते हैं।
सारे शब्दों के अर्थ जहाँ जाकर अर्थ रहित हो जाते हैं वहीं से प्रेम के बीच का प्रस्फुटन होता है। प्रेम का अर्थ शब्दों से परे है। प्रेम ही ईश्वर है।


कहते हैं कि प्रेम में बड़ी शक्ति होते हैं जिसे कायनात तक झुक जाती है। प्रेम की परिभाषा सदैव से पावन है और रहेगी भी। प्रेम ही मनुष्य का सुंदर तम प्रगति पथ है।
प्रेम एक भावना है ,एक एहसास है जिसे आचरण में देखा जा सकता है।
आस्तिक होना भी प्रेम का परिचायक है, पारिवारिक होना भी प्रेम का ही परिचायक है।
देशभक्ति का जज्बा हो या मातृभूमि से प्रेम, यह प्रेम का शाश्वत अति पवित्र रूप है।


ईश्वर भक्ति प्रेम का सर्वोच्च स्वरूप है।
मात्र, पित्र, गुरु भक्ति, यह प्रेम का महान स्वरूप है।
संतान के प्रति माता-पिता का प्रेम परमात्मा के प्रेम के समान विशुद्ध और निस्वार्थ भाव का द्योतक है। प्रेम जीवन को शांति पथ पर ले जाता है।


समुद्र की गहराई को नापा जा सकता है परंतु प्रेम की गहराई तक पहुंचना ही असंभव।
प्रेम में बदलाव की बड़ी ताकत छुपी रहती है, निस्वार्थ प्रेम से बुरा व्यक्ति भी अच्छा व्यक्ति बन जाता है।
प्रेम केवल मानवीय संवेदना ही नहीं यह तो अन्य जीवधारियों में भी पाया जाता है, देखो ना माँ चाहे वह पशु पंछी हो किसी भी योनि में क्यों ना हो अपने बच्चे से कितना प्रेम करते हैं उसकी हिफाजत व परवरिश करती है यह प्रेम ही तो है, प्रेम का विशुद्ध स्वरूप है।
इंसानों की भाषा या आपस में पशु पंछी भी प्रेम की भाषा समझते हैं।


प्रेम एक अवस्था है, इबादत है, पूजा है, प्रार्थना है, नशा है प्रेम। जिसकी कोई भी सीमा नहीं, न ही इसे नापा जा सकता है न तोला।
प्रेम तो सीमाओं से परे है।
प्रेम से दूसरे के विश्वास को जीता जा सकता है। किसी भी कार्य को आसान बनाया जा सकता है।
प्रेम सौहार्द को जन्म देता है, प्रेम से आपसी कटुता दूर की जा सकती है।
प्रेमी स्वभाव का व्यक्ति समाज में इज्जत पाता है।
मानव समाज में व्याप्त राग, द्वेष, ईर्ष्या यहाँ तक कि शत्रुता मिटाने के लिए प्रेम पूर्ण व्यवहार श्रेष्ठतम औषधि की तरह होता है।
जीवन प्रेम के बिना व्यर्थ होता है, शुष्क है, नीरस होता है।
इसमें त्याग व समर्पण छिपा होता है।
प्रेम से असंभव कार्य भी संभव हो जाता है।


सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)


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