चाहत से दुनिया हंसी है मेरी - गीत - दिनेश कुमार मिश्र "विकल"

आई हो अभी तो तुम जानेमन,
तुम अब जाने का नाम न लेना,
ढला दिवस अब रजनी है आई,
घर पर  है मुझको जाना।

अवश्य पूरा करूँगा इक दिन,
आएं क्षण शीघ्र करेंगे एक इरादा,
हो बड़े मतलबी अरु नटखट,
ना दिल को यूँ तड़पाना।‍

ना जाने कब होगा हृदय परिवर्तन,
आऊँगी मैं फिर से धीरज धरो,

आता नही कभी कल,
नयनों में है मूरत तेरी,
तेरे पल्लू से बंधी है मेरी डोरी,
समाई है साँसों में तू मेरी,
चाहत से दुनिया हंसी है मेरी।

आई  हो अभी तो तुम जानेमन
तुम जाने का नाम न लेना।।

दिनेश कुमार मिश्र "विकल" - अमृतपुर, एटा (उत्तर प्रदेश)

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