मानव परिकल्पना - कविता - विनय विश्वा

ये दुनिया
सूरज, चाँद, तारे
है अनंत ब्रह्मांड न्यारे।

मानव की है परिकल्पना अधूरी
बार-बार करते वो सिद्धि पूरी।
कभी ग्रह नक्षत्रों की खोज में जाए
कभी पृथ्वी के गर्भ गृह सागर मथ आए।

कुछ ढूंढे कुछ सोचें विचारें
मानव की परिकल्पना है न्यारे
जीवन अद्भुत ये हैं संवारें
सभ्य समाज की आवाज
आवाम है पुकारें।
ये दुनिया चाँद तारे
है अनंत ब्रह्मांड न्यारे।

विनय विश्वा - कैमूर, भभुआ (बिहार)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos