हे! राम - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला

हे! राम तुम्हारी धरती पर,
अब सत्य पराजित होता है।

चहुँ ओर दिखे अन्याय यहाँ,
नित, रावण, पूजित होता है।

तुमने तो कुटूम्ब की खातिर,
राज्य त्याग वनवास लिया।

भ्रातृ धर्म, पति धर्म निभाया,
पापी रावण का नाश किया।

विजय  सत्य  की होती है,
यह  ही सन्देश तुम्हारा है।

हे! पुरुषोत्तम तुम फिर जन्मो,
जन  जन  ने तुम्हें  पुकारा है।

हे ! राम तुम्हारी धरती पर,
अब पाप कपट फिर छाया है।

सब त्राहिमाम हैं बोल उठे,
जब दिखा दुःखों का साया है।

हे!  राम दया दृग खोलो प्रभु,
अब फिर से सब संताप हरो।

है  भोली जनता बिलख रही,
हे! पुरुषोत्तम  अब माफ़ करो।

जब रावण, खर, दूषण  मारे,
तो  इन दुष्टों की  क्या क्षमता।

अतुलित बलशाली राम प्रभू,
तुमसे  दैत्यों की क्या समता।

हे! प्रभू बचा लो  सृष्टि को,
यह  ही  फरियाद हमारी है।

हे! पुरुषोत्तम तुम फिर प्रकटो
ये  दुनिया  तुम्हें  पुकारी  है।

सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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