अंग भस्म रमाने वाले,
नीलकंठ कहलाने वाले।
हे त्रिपुरारी हे शिव शंभू,
नियति चक्र चलाने वाले।।
बहे जटा से गंगा धारा,
नटराज करे नित्य प्यारा।
डम डम कर डमरु बाजे,
हाथों में त्रिशूल साजे।।
करे नाथ कैलाश पे वासा,
भक्तों को भगवन से आशा।
जय भूतनाथ जय विश्वनाथ,
सब कष्ट हरो हे भोलेनाथ।।
रमाकांत सोनी - झुंझुनू (राजस्थान)