आईना - कविता - मास्टर भूताराम जाखल

आईना है जो सदैव हकीकत बताता हूँ,
इन्सान को खुद की अहमियत बताता हूँ ।
गुण-दोषों की वह समालोचना करता है,
सच कहने से वो तनिक भी नहीं डरता है।।

आईना खुद को ही हकीकत बतायेगा,
औरों के लिये औरों के जज्बात जतायेगा।
आईना कैसा भी क्यों ना हो, धर्म निभाता है,
विचलित तनिक भी कभी नहीं हो पाता है।।

आईना समान कम लोग ही होते हैं,
जो बता हकीकत बुराइयाँ धोते हैं।
आईना समान कम लोग ही बोलते हैं,
बाकी तो जहर ही जहाँ में घोलते हैं।।

कहे लेखनी से सदा कवि भूताराम,
आईना सम बनी रहे यह सदा अवाम।
दे रहा है कवि कलम जरिये पैगाम,
आईना सम बुराइयों पर लगे लगाम।।

मास्टर भूताराम जाखल - सांचोर, जालोर (राजस्थान)

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