मिट्टी के दीये - कविता - श्याम "राज"

दीप जलाओ खुशियों के
मिटा दो अंधियारे दिलों के
देखो ! आ गई है दिवाली
फिर खुशियों की बारात ले के 
रंग रोगन देखो सब पुराने हुए
चलो फिर से नया करते हैं
खुद भी हँसते, सबको हँसाते हैं
ले आना तुम भी इस दिवाली को
मिट्टी के दीये, तेल, रूई की बाती को
छोड़ लडिया थडिया लाल पीली गुलाबी को
अब तक पैसें वालों से बहुत खरीदें
चलो ! इस बार खरीदें अम्मा से
जो बैठी है सुबह से चौराहे पर
ले मिट्टी के दीये
मोल-भाव यहां तुम मत करना बस
दो रूपये का है एक दीया..।।

श्याम "राज" - जयपुर (राजस्थान)

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