जीवन का शाश्वत नियम, आत्म चिन्तना मूल।।१।।
भूल अर्थ विस्मृति समझ, मान अर्थ अपराध।
एक भूल नवसीख दे, इतर मिलाये धूल।।२।।
भूल कठिन अवसाद की, जीवन जो संघर्ष।
भूल सुधारे स्वयं जो, पाये शुभ उत्कर्ष।।३।।
भूल भूलैया जिंदगी, भूल बने जब शूल।
अहंकार छल झूठ से, जीवन पथ प्रतिकूल।।४।।
धन वैभव सुख कीर्ति सब, होवे सब कुछ नाश।
एक भूल बन त्रासदी, पतन गर्त आकाश।।५।।
अनजाने में भूल हो, हो उसका अहसास।
क्षम्य सदा वह भूल है, हो सुधार विश्वास।।६।।
लोभ मोह धन सम्पदा, हिंसा रत जो भूल।
खल कामी दुष्कर्म रत, हो जीवन निर्मूल।।७।।
बोधन हो जब भूल का, हो सुधार मन भाव।
बन्धु मीत भूले सभी, मानस थे जो घाव।।८।।
सहज नहीं वो भूलना, मधुरिम क्षण सुखसार।
रोग शोक गत आपदा, दुःसह दुख आगार।।९।।
जो लज्ज़ित निज भूल से, अश्रु भरी हो आँख।
आत्मग्लानि निज भूल मन, समझ मार्ग उत्थान।।१०।।
टूटे सब अनुबन्ध जग, एक भूल आघात।
रिश्ते टूटे चारुतम, मधुरिम सब जज़्बात।।११।।
कवि निकुंज मन वेदना, चाह नहीं नव सीख।
हेतु भूल चाहत मनुज, परितापित बस चीख।।१२।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली