जातिवादी प्रेम - कविता - आशीष कुमार पाण्डेय

जब प्रेम किया था, तब ना पूछा उसने।
फिर आज क्यों वो इतना, जातिवादी हो रहा है।।
जब  प्रेम को विवाह के, सूत्र में बाँधना चाहती हूँ
तब वो क्यों इतना, जातिवादी हो रहा है 
पहले तो, समाज से नही डरता था 
अब क्यों, समाज की बाते बता रहा है 
वो प्रेम ही, करता है ना मुझसे 
या अपने खेल के लिए, मुझे खिलौना बना रहा है 
जब प्रेम किया था, तब ना पूछा उसने।
फिर आज क्यों वो इतना, जातिवादी हो रहा है।। 
जो मेरे रोने पर, ऐतराज़ करता था 
वही आज आँखों में, आँसू दे गया है 
जो मेरी ख्वाहिशों को, पूरा करने को कहता था
वही आज, उनका खून कर गया है
मेरे नाम के आगे, लगा दिया था, अपना नाम उसने
तो फिर आज क्यों वो इतना, अर्थवादी हो रहा है
जब प्रेम किया था, तब ना पूछा उसने।
फिर आज क्यों वो इतना, जातिवादी हो रहा है।।

आशीष कुमार पाण्डेय - कानपुर (उत्तर प्रदेश)

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