फरिश्ते - लघुकथा - सतीश श्रीवास्तव

खटिया पर पड़े बीमार पिता ने आवाज लगाई- "परमेश्वर एक गिलास पानी तो दे गर्म करके...कहते गर्म पानी बीमारी में अच्छा होता है।"

बेटा परमेश्वर ने अधबुझे चूल्हे की राख में गिलास धंसा कर पानी गुनगुना सा करके पिता को देते हुए कहा- "बापू पहले अपने हाथ साबुन की बट्टी से धो लें फिर पानी पीना और हां अब खाँसी तो नहीं आती, अगर आये तो मुंह पर तौलिया ज़रूर लगाइयो।"
पिता ने अपने टूटती सी आवाज में कहा- "वो तो सब ठीक है ये बता तू काम पर क्यों नहीं जा रहा है?"
"तुझे पता है तेरी माँ कह रही थी अब तो नाज पानी भी खत्म हो गया है।"
परमेश्वर ने समझाया- "बापू पूरे देश में आना जाना बंद है कोई कोरोनावायरस से बचने के लिए.. कहते हैं बड़ी खतरनाक बीमारी फैलने का अंदेशा है। इस स्थिति में बचाव करना ही सबसे बड़ा इलाज है ।"

तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया।
सामने एक मोटरसाइकिल पर कुछ सामान लेकर दो लोग आये उन्होंने परमेश्वर को आटा नमक और सब्जियों की थैली के साथ खाने के डिब्बे दिये और एक पर्चा देते हुए कहा यह पर्चा संभाल कर रखना जरुरत पड़ने पर फोन लगा देना।

अंदर माँ को सामान की थैली देते हुए परमेश्वर ने कहा- "माँ कुछ लोग आये थे सामान और खाना भी दे गये हैं।"
माँ ने कहा बेटा वह कुछ लोग नहीं थे वे तो फरिस्ते थे फरिस्ते।

सतीश श्रीवास्तव - करैरा, शिवपुरी (मध्यप्रदेश)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos