जो तुमने साथ को छोड़ा,
बुरा था क्या किया मैंने,
जो तुमने हाथ को छोड़ा।
तुम्हारी हर अदाओं पर-
मैं लट्टू सा रहा नचता,
मगर तुमने हमारे दिल को-
बेरहमी से क्यों तोड़ा।
दिल तोड़ा मगर दिल की-
तुम्हें आवाज़ ना आयी,
तुम भूली मुझे ऐसे-
कभी मेंरी याद ना आयी।
मेंरे टूटे हुए दिल के-
ए टुकड़े शब्द में बिखरे,
वो सारे शब्द जुड़-जुड़कर-
मेंरी कविता है बन आयी।
मैं इस कविता को मंचों पर
हमेंशा गुनगुनाऊँगा,
भरी महफ़िल के सम्मुख मैं-
तुम्हें हर पल बुलाऊँगा।
मैं अपने मन के ईश से-
हूँ ए प्रार्थना करता,
तूँ मुझको भूल जाए पर,
तुझे ना मैं भुलाऊँगा।।
बजरंगी लाल - डीहपुर, दीदारगंज, आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश)