राज़ खुशी का, हँसकर खोला
कल की बात न करना प्यारे
सोच नयन मत भरो दुलारे
कल गुज़रा या आने वाला
ग़र हो हृदय दुखाने वाला
याद किया तो पीड़ा होगी
सह न सकेगा मनवा भोला
आज़, आज़ से फिर यह बोला
चाहे इक सूखी लकड़ी हो
बेलों पर फलती ककड़ी हो
दोनों को मिट ही जाना है
मिट-मिट कर फिर-फिर आना है
क़िस्मत समय चक्र की दासी
करती रिक्त उम्र का झोला
आज़, आज से फिर यह बोला
चिंता से चिंतन बेहतर है
नूतन आशाओं का घर है
चिंता में दुख चिंतन में सुख
पल में दिखला देता है मुख
सोच, आज़ ही तो कल होगा
तूने कल बेवजह टटोला
आज़, आज़ से फिर यह बोला
इसलिए हर पल जिंदा रह
ग़म है तो बस खुद से ही कह
मुश्किल भी तू, समाधान भी
रोना धोना भूल झूमले
क्यों न कभी अपना बल तोला
आज़, आज़ से फिर यह बोला।।।।
ममता शर्मा "अंचल" - अलवर (राजस्थान)