वीर पुरुष - कविता - सोनम कुमारी

है गर्व तुम्हीं पर, हे वीर पुरूष!
मन अमरत्व, निज स्वार्थ-विमुख।
बढ़ते हो नित कर्त्तव्य-पथ प्रमुख।
कुछ परिस्थितियाँ है, तुम्हारे विमुख।
तुम अज्ञेय, अमर, अविनाशी पुरूष।
नही दुःख-दारुण, कुछ-भी तुम्हारे सम्मुख।
मन गर्वित था, अब भी हैं।
तुम गांधी, तिलक, शिवजी वंशज।
है समर्पण, गर्वित सम्पूर्ण मन-मस्तिष्क।
माना, वर्तमान शशंकित है, युद्धों-से।
स्व-उन्मुख होकर, बुलंद मन-मस्तिष्क।
अब शक्तियों का बढ़ा वर्चस्व "राफेल" से।
किन्तु उपयोग करना मन-मस्तिष्क के साथ में।
जब शांति-ही सुरक्षा कारक बने,
अन्यथा इस दुष्कर, प्रहार से बचे।
है गुजारिश अपने देश प्रहर्ता से..
कर-कोटि प्रणाम तुम्हारी न्यौछावरता पे।

सोनम कुमारी - देवघर (झारखंड)

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