सम्मान से आना - कविता - सुधीर श्रीवास्तव

सैनिक की पत्नी ने 
अपने पति को सीमा पर
युद्ध में जाने से पहले
अपने सिंदूर का
विजय तिलक कर कहा,
माँ भारती के लाल
तुम्हे सौ सौ बार नमन है,
तेरा सौ सौ वंदन है,
अब तुम्हें जाना ही है तब
मेरा अरमान है
मेरा पति मेरा भगवान है।
मगर
आतताइयों की करतूतों से 
अपनी धरती माँ का आँचल
दागदार होने से बचाना,
दुश्मन के घर में घुसकर 
सबक सिखाना।
तिरंगे को दुश्मन की 
छाती पर फहराना,
हमारा मोह छोड़
धरती माँ से नेह लगाना।
दुश्मन को सबक सिखाकर ही
वापस शान से आना,
यदि ऐसा न भी हो तो
तिरंगे में लिपटकर
बड़े सम्मान से आना।

सुधीर श्रीवास्तव - बड़गाँव, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)

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