चला ध्वज लिए - कविता - शेखर कुमार रंजन

मैं चला ध्वज लिए,
आसमा की तरफ
लहराते हुए गीत गाते हुए,
मुस्कुराते हुए फहराते हुए।

मैं चला ध्वज लिए,
आसमा की तरफ
ध्वज एकता की अपनी,
प्रतीक बन गई।

सम्मान से तुम्हें,
मैं फहराता रहा
मैं चला ध्वज लिए,
आसमा की तरफ।

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई,
ये सभी एक थे
सबकी मंजिल भी एक,
सबकी चाहत ये देश।

प्रकाशित रहे सबके मन में,
प्रेम की भावना 
सोचे न कोई बुरा किसी का,
सपने हो पूरे हर किसी का।

तिरंगा के बीच में,
है एक चक्र पड़ा
जो सिखाती रही,
कभी न रूकना। 

केसरिया समर्पण सिखाया,
बताया कैसे जिओ जिंदगी
सफेद सच्चाई का रंग, 
दिखाई जिंदगी।

हरा ऊर्जा भर दिया,
है अपनी जिंदगी
चक्र के चौबीस तिल्लीया,
बढ़ते रहने का संदेश है दिया।

मैं चला ध्वज लिए,
आसमा की तरफ
लहराते हुए गीत गाते हुए,
मुस्कुराते हुए फहराते हुए।

शेखर कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

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