दर-दर ढूँढता रहा मैं खुद को खुदा
किस रास्ते चला हैं नहीं कुछ पता,
क्या हैं मंजिल मेरी ज़रा तू बता।
मैं क्या चाहता हूँ? नहीं हैं पता,
कभी गाँव की यादें रुलाती मुझे
कभी शहरी जीवन ही भाती मुझे,
पता न जिंदगी क्यों? सताती मुझे
मैं क्या चाहता हूँ? नहीं हैं पता,
तू ही बता दें मै हूँ आखिर क्या?
मैं हूँ ताकतवर या निर्बल बता,
ऐ जिंदगी न तू मुझको ऎसे सता।
अगर हूँ मैं दोषी तो सजा दिला,
पर जो भी मिला तुम्हीं से मिला
फिर भी न हैं कोई शिकवा-गिला,
तकलीफों का जाम न ऐसे पिला।
मैं क्या चाहता हूँ? नहीं हैं पता,
दर दर ढूँढता रहा मैं खुद को खुदा
किस रास्तें चला है नहीं कुछ पता,
क्या हैं मंज़िल मेरी ज़रा तू बता।
शेखर कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)