प्रभु समर्पित है तुम्हें।
प्रेम धागे में पिरो कर,
कर रही अर्पित तुम्हें।
है कामना अब तो प्रभू,
कोई ना हमसे भूल हो।
अब प्रेम की गंगा बहे,
ना नफरतों के शूल हों।
ये कठिन जीवन अग्निपथ,
ना भटक जाऊँ ज्ञान दो।
बस नेक रस्तों पर चलूँ,
हरदम तुम्हारा ध्यान हो।
हम तुम्हारे शिशु प्रभू,
तुम पिता अरु मातु हो।
बालक अगर कपूत है,
माता नही कुमातु हो।
सुन हे! प्रभु परमात्मा,
तुमसे मेरी याचना।
निज प्यार से मत दूर कर,
तेरी शरण की कामना।
सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उ०प्र०)