तोहफा दिया - ग़ज़ल - ममता शर्मा "अंचल"

क्यों भला तुमने हमें बिसरा दिया
किसलिए हमको, सफर तन्हा दिया

क्या मुहब्बत का यही दस्तूर है
खेल कर जज़्बात से, ठुकरा दिया

चाह थी मिल जाएगा तुमसे सुकूँ
किन्तु तुमने दर्द का, तोहफ़ा दिया

राह में दामन छुड़ाकर, गुम हुए
पास थी मंजिल मगर भटका दिया

प्रीत के बदले थमा दी बेरुखी
जिंदगी बनकर, हमें धोखा दिया

तब कहा, हरगिज़ न बिछुड़ेंगे कभी
अब विरह का हार , क्यों पहना दिया

आज जीना आ गया "अंचल" हमें
वक्त ने हर इल्म, अब समझा दिया।।।।

ममता शर्मा "अंचल" - अलवर (राजस्थान)

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