हो रामराज्य निर्भेद वतन - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

मेरे     सपनों   का   भारत  जग,
सुरभित  सुष्मित अभिराम  बने।
बिन  दिन   दुःखी समता मूलक,
शिक्षित    उन्नत   सुखधाम बने। 

हो पूर्ण   महाबल  समरथ  जग,
नव शक्ति सृजन अनुसंधान बने।
निर्मल पावन सुख शान्ति मुदित,
सम्मान    वतन   नवकीर्ति  बने। 

हो   न्याय  सदा   समदर्शी जन,
न्यायालय  नित   निरपेक्ष   बने।
सर्व धर्म     सम्वाहक     भारत,
सद्भाव    पूरित   रसधार   बने। 

मिट  विकार  मन  पाप    सकल,
हर   जनता    ख़ुद    ईमान  बने।
तज लोभ कपट छल मोह विभव
परमार्थ  पथिक   इन्सान     बने। 

हो कृषक मुदित लखि खेत हरित,
धन धान्य   वतन   मुस्कान   बने।
रोज़गार    पूर्ण   युवजन   भारत,
संसाधन  शासन    नीति      बने। 

हो    प्रेमभाव    उपकारक   मन,
सहयोग    आपसी   भाव    बने।
हो   लक्ष्य मात्र    उन्नति   भारत,
मर्यादित   जीवन    सार     बने।

दिल भाव समर्पण  सब  भारत,
कर्तव्य   वतन     निर्माण   बने।
उत्पाद   सकल   उपयोगी जन,
आत्म निर्भर  भारत सफल बने। 

बन  महाशक्ति  भारत   सम्बल,
नित   धीर   वीर  गंभीर     बने।
हो क्षमाशील  साहस  अविचल,
नवक्रान्ति    दूत   रणवीर   बने। 

नित विज्ञान यतन नवशोध वतन,
सम्मान   तिरंगा    मान       बने।
थल  जल  नभ   जाग्रत  हरपल,
शत्रुञ्जय   नित    विकराल बने। 

नित प्रगति परक हो जनमानस,
अनुकूल सोच   मतिमान   बने।
हो   रोम   रोम   भारत  चिन्तन,
भक्ति  प्रेम  राष्ट्र   रसधार   बने। 

हो स्वाभिमान निज गौरव  पर,
निज संस्कृति भाषा मान  बने।
निज धर्म नीति नित गौरव मन,
जीवन   दर्पण  संसाध्य    बने।  

हो स्वर्ण देश भारत फिर  जग,
फिर शान्तिदूत  प्रतीमान  बने। 
पुनः  विश्वगुरु  प्रेरक    जीवन,
विकसित भारत  वरदान  बने।  

ममता करुणा मधुरिम आंचल,
निर्भीत सबल  नवशक्ति   बने।
भगिनी  बेटी    माँ   वधू    बन, 
बहुरूप  विदित  सम्पूज्य  बने।  

मेरे   सपनों   का  नव   भारत ,
खुशियाँ निकुंज मधुगार   बने।
हो  रामराज्य   निर्भेद    वतन,
कल्पद्रुम भारत सम स्वर्ग बने।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

Join Whatsapp Channel



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos