अधूरा प्यार - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

किया प्यार निश्छल दिल देकर,
बहा   अविरल  प्रवाह   रसधार।
तन मन धन सब चिन्तन अपने,
सजनी  अर्पित  तुझको  संसार।

समझ  न  पाया  कमी  प्यार में,
लुटाया  प्यार   मधुर    उपहार।
दीवाना   आशिक  बन  सजनी,
किया  अभिव्यक्त   हृदय उद्गार। 

छोड़ा  जग  अपने  सब   रिश्ते,
किया सखि  तुझपर मैं ऐतवार।
नूर  ख़ुदा  कुदरत  का  तोहफ़ा,
याराना    लुटा   प्यार  दिलदार।

क्या हुआ  गिला शिकवा बोलो,
सनम  दिल तोड़ तजी मझधार।
बेवफ़ा    धार    पतवार   कौन,
डूबती   नाव   मौत   बन  यार।

क्या  सोचा  ज़न्नत   जीवन  हो,
मधुरिम    रचें    प्यार    संसार।
खूशबू   महके   सनम  जिंदगी,
बनाऊँ    स्वर्ग   परी    गलहार। 

पलभर   में   भूली   सब   लम्हें, 
चारुतम   प्रिये    प्यार    शृङ्गार।
कसमें खायी जनम  जनम   की  
जीवन   प्रीत  सजा     गुलज़ार। 

गयी   छोड़   नवनीत  प्रीत   के, 
विश्वास घात   सनम  कर  प्यार।
बना अधूरा   प्रीत मिलन    अब,
प्रिये    टूटे    सब        रिश्तेदार। 

ख्वावों की  थी  मल्लिका   बनके,
लिपटी   बाहों      में      रुख़्सार।
बन  अतीत  गुलज़ार  सजन  की,
बेवफ़ा    सनम    अधूरा    प्यार।।


डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos