ममता शर्मा "अंचल" - अलवर (राजस्थान)
पिघलते देखा - ग़ज़ल - ममता शर्मा "अंचल"
बुधवार, अगस्त 05, 2020
हमने आज मौकिन के पथ पर वाचालों को चलते देखा
जमी बर्फ़ को बिना धूप के खुद ही पिघलते देखा
जज्बों में उम्मीद जगी तो मायूसी की हुई विदाई
बहुत अचंभा हुआ, रात को दिन के लिए मचलते देखा
मिले अँधेरे और उजाले इक पल को, पर मिलते तो हैं
ऐसा मंज़र देख कुटिल को हाथ सदा ही मलते देखा
अहसासों में खुशी बसी तो जिस्म बावला हुआ अचानक
आलस छोड़ एक पल में ही नौ-नौ हाथ उछलते देखा
खुलकर नाचे अरमाँ दिल के,पता मिला उनको मंज़िल का
और अचानक बेहोशी को अपने आप सँभलते देखा।।।।
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