लेके राम अवतार - कविता - कुमार निर्दोष

इस जग में पृथ्वी पर जब, फैला था अत्याचार।
तब आये ईश्वर तुम जग में, लेके राम अवतार।

आज के युग में क्यों नहीं, आते हो तुम राम।
पैदा हुए हैं रावण कितने, और करते हैं उल्टे काम।

अहिल्या कितनी दुःखी हैं, सीताओं के अपहरण हो रहे।
पुरुषोत्तम किस दुनिया में ना जाने तुम कहाँ सो रहे?

है ईश्वर आ जाओ फिर से, और दुष्टों को दे दो श्राप।
अन्यथा यूँ ही बढ़ते रहेंगे, तेरी इस दुनिया में पाप।

तेरी इस निर्दोष दुनिया का अब, देखा ना जाता रोना।
पैदा हुआ है एक और रावण, है जिसका नाम कोरोना।

कुमार निर्दोष - दिल्ली

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