बहिन के नाम भाई की पाती - ग़ज़ल - अशोक योगी "शास्त्री"

तुम्हे  दुनियाँ  की सबसे खूबसुरत मै मानता हूँ , 
तुम   मे   ही   अक्श   माँ   का   मै  ढूंढता  हूँ  !

याद  आती  है  तेरी  बचपन  की  शैतानिया मुझे,
उस बिछुडे़ बचपन को अब भी दिल मे, मै संभालता हूँ !!

तू  पिटती   थी   माँ   से   और   रोता   मै  था,
अब भी तेरी चोटों पर मरहम की पट्टी मै बांधता हूँ !!!

तुमसे ज्यादा कोई जान नही पाया मुझे अब तलक,
इसलिए हर  रक्षाबंधन पर तेरी  राखी मै बांधता हूँ !!!!

तू  रूंठने की  वो  आदत भूली नही है अब तलक,
मग़र अजीब़ है यह बंधन तुमसे हर बार मै हारता हूँ !!!!!

ग़र  कुछ  मतभेद  है  तो सुलझा लेंगे गले लगकर ,
आ जाओ रक्षाबंधन पर लो फिर माफी मै मांगता हूँ !!!!!!

अशोक योगी "शास्त्री" - कालबा नारनौल (हरयाणा)

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