निर्मल रक्षा बंधन - कविता - डॉ. मीनू पूनिया

रेशम की डोर नहीं सिर्फ ये
स्नेह सूत्र है पवित्र बंधन का,
जग में नहीं है ऐसा निर्मल कोई
भाई- बहन के अटूट बंधन सा,
बह रहा पावन महीना सावन का
प्रफुल्लित राखी का त्योहार मनभावन सा,
उमंग और उल्लास भरे हृदय में
प्यारी बहनिया चहके चमन में,
तैयार होकर बहना आए मायके की ओर
बांधने भाई की कलाई पर रक्षा डोर,
कोयल मोर की मधुर कूक मचाए शोर
हरियाली प्रकृति की छटा चित विभोर,
उत्सुक भैया दौड़ कर जाए बाजार
खरीदने बहना के नूतन उपहार,
सज गई कलाई, बहना ने राखी सजाई
दोनों के चेहरों पर आए बहार।

डॉ. मीनू पूनिया - जयपुर (राजस्थान)

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