प्रकृति आज बैचेन है - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

प्रकृति आज बैचेन है, देख मनुज आचार।
जिसने दी जीवन उसे, करे प्रकृति संहार।।१।।

क्षिति जल पावक नभ अनिल, बना सकल संसार।
बने प्रदूषित मनुज से, क्षत  विक्षत आधार।।२।।

नित कर्तन गिरि तरु सरित, प्रकृति हताहत कोख।
तूफ़ान बाढ़ भूस्खलन, भूकम्पन भू शोख।।३।।

औद्यौगिक लिप्सा जगत, धूम तिमिर आकाश।
वात प्रदूषित जिंदगी, घूँट रहा नित श्वाँस।।४।।

फैल रहे महारोग जग, बन जीवन यमराज। 
छल कपटी बन स्वार्थ में, सत्ता सुख आगाज।।५।।

अस्त्र शस्त्र की होर जग, विस्तारक परमाणु।
हालाहल बन सृष्टि का, विध्वंसक जीवाणु।।६।।

सुष्मित कुसुमित प्रकृति यह, सुरभित जीवन लोक।
सूरज चंदा अहर्निश, हरे तिमिर जग शोक।।७।।

छह ऋतुओं में प्रकृति सज, विविध रूप शृङ्गार।
शीताकुल खग पशु मनुज, दे वसन्त उपहार।।८।।

मधुरिम वन मधु माधवी, मुकुलित चारु रसाल।
फागुन के नवरंग से, सरसिज गाल गुलाल।।८।।

कू कू करती कोकिला, पंचम स्वर मधु गान।
नव प्रभात अरुणिम किरण, प्रमुदित जग इन्सान।।९।।

नव विकास जग चहुँमुखी, प्रकृति ग्रीष्म धर रूप।
औद्यौगिक अरु परिवहन, संचालन पा धूप।।१०।।

ग्रीष्मातप व्याकुल धरा, व्यथित लू अवसाद।
श्रावण भादो रूप में, बारिस प्रकृति प्रसाद।।११।।  

हरियाली हर्षित धरा, फसल खेत खलिहान।
पुष्पित नव पादप विपिन, हरित भरित उद्यान।।१२।।

कूप सरोवर सरित  सब, भरे सलिल सब झील।
जल प्रपात निर्झर धरा, सागर में तब्दील।।१३।।

जल यौवन बन षोडशी, नदियाँ नशा उफ़ान।
जल प्लावन में लीन सब, जन धन मिटे मकान।।१४।।

हेमन्त ऋतु मधुरागमन, हर आप्लावन वृष्टि।
आश्विन कार्तिक मास शुभ, प्रकृति चारुतम सृष्टि।।१५।।

दुर्गाराधन पर्व यह, महाविजय त्यौहार।
खुशी दीप दीपावली, बनी प्रकृति उपहार।।१६।।

शरद्काल पुलकित कृषक, पकी फ़सल लखि खेत।
मन्द मन्द शीतल पवन, प्रवहित समतल रेत।।१७।।

अन्नपूर्ण करती प्रकृति, झूमे कृषक जहान।
लदे फलों से विविध तरु, वनौषधि हिमवान।।१८।। 

थिथुरन कम्पन रूप में, प्रकृति शिशिर अवतार।
तुषार हार मुक्तामणि, तरुदल सज शृङ्गार।।१९।।

स्वच्छ प्रकृति कुसमित धरा, हो जीवन सुखधाम।
संरक्षण पर्यावरण, लगा वृक्ष अभिराम।।२०।।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos