दोस्त और दुश्मन - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

कलियुग में कहना कठिन, कब कौन है मीत ।
दोस्त कभी दुश्मन बने , दुश्मन  करते प्रीत।।१।।

छल प्रपंच मिथ्या कपट, फँस लालच संसार।
लाभ हानि बस देखकर, बनते दुश्मन यार।।२।।

भला दोस्त पाएँ कहाँ, मिटा आपसी त्याग।
खत्म हुआ विश्वास जल, स्वार्थ शत्रु की आग।।३।।

तन मन धन अर्पित सखा, साथ खड़ा अवसाद। 
परमुख नित गुणगान कर, बाँटे नीति प्रसाद।।४।।

लिप्सा जग ऐसी बला, तोड़े सब सम्बन्ध।
धोखा दे दुश्मन बने, दे धोखा अनुबन्ध।।५।।

टूटे सब मधुरिम मिलन, क्षत विक्षत अरमान।
बन हिंसक खुद दोस्त का, करे आम बदनाम।।६।।

दोस्त अगर दुश्मन  बने, होता सत्यानाश।
जाने वह सब भेद को, खोले पोल विनाश।।७।।

दोस्त बनाएँ परख कर, फँसे नहीं जज़्बात।
रखें गुप्त अन्तर्कथा, वरना हो आघात।।८।।

यहाँ कोई शत्रु नहीं, मीत नहीं है कोय।
बने दोस्त व्यवहार से, वैसे दुश्मन होय।।९।।

दोस्त कौन दुश्मन यहाँ, कौन करे पहचान।
दुख सुख में जो साथ हो, बिना किसी अहसान।।१०।। 

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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